सुबह का समय और सोशल मीडिया के जाल।

अहा! सुबह का वो ख़ूबसूरत समय, जब चिड़ियाँ चहचहाहट करती हैं, सूरज की पहली किरण आंखों में चुभती है, और हम? हम अपने मोबाइल फ़ोन को उठाकर सोशल मीडिया पर रात के अपडेट्स चेक करते हैं जैसे कि कोई अंतरराष्ट्रीय समस्या का हल हमारे इंस्टाग्राम अकाउंट पर ही निर्भर करता है।

 

अब आप कहेंगे, "अरे, पर ये तो सब करते हैं!" बिल्कुल सही!  एक स्टडी के अनुसार, औसत इंसान रोज़ दो घंटे सोशल मीडिया पर गुज़ारता है। इस आश्चर्यजनक तथ्य के आगे मैं सोचता हूँ, क्या इस वक़्त को हम कुछ और क्रिएटिव करने में लगा सकते थे? 

हल क्या है?

 

टेक्नोलॉजी ने जितनी समस्या खड़ी की है, उतने ही समाधान भी दिए हैं। हमारे पास अब ऐप्स और एक्सटेंशन्स हो गए हैं जो सोशल मीडिया के एडिक्शन को रोकने में हमारी मदद करते हैं। लेकिन मेरे पास एक सीधा और आसान हल है । जी हां, आप बस अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स से लॉग आउट कर दें फिर कुछ कमाल होगा।

 

शुरू में तो आप को लगेगा कि ये बड़ा ही साधारण हैं , मतलब बच्चों का खेल है। लेकिन फिर आप देखेंगे कि ये छोटा सा कदम आपको कैसे अनवांटेड स्क्रॉलिंग से बचा रहा है। जब भी सोशल मीडिया देखने की इच्छा होगी, तो लॉग-इन करने का ख़याल आएगा , और फिर आप सोचेंगे, "अरे भाई, इतना काम कौन करे?" और फिर आप वापस अपने काम पर लग जाएंगे। 

 

ये तरीक़ा जेम्स क्लियर की "एटॉमिक हैबिट्स" में बताए गए तीसरे नियम का व्यावहारिक स्वरूप है, जहाँ वे कहते हैं कि बुरी आदतों को मुश्किल बना दो। तो बस, इस को करें और अपने जीवन में एक जादू देखें।

 

हमारे जीवन में क्या परिवर्तन आएगा?

 

अब चलिए, आप सोच रहे होंगे कि ये तो ठीक है, पर इसमें मज़ा कहाँ है? ओह हो, मज़ा तो तब आएगा जब आप बाज़ार में खड़े होंगे , और आपका हाथ जेब की त़रफ़ बढ़ेगा फ़ोन निकालने के लिए, और फिर याद आएगा कि मैंने तो लॉग आउट कर रखा है। तो फिर अब क्या किया जाए? बड़ी ही आदिम युग की परंपरा का पालन करते हुए, आप अपने आस-पास देखना शुरू करेंगे , और आप को नज़र आयंगे... लोग। हाँ, वो जीवित प्राणी जो वास्तव में आप के आस-पास थे, आप उन पर ध्यान देना शुरू देंगे। 

 

ये छोटे सा परिवर्तन आपकी सुबह के रूटीन को न सिर्फ़ बदल देगा , बल्कि आपके समय की गुणवत्ता और आप के आस-पास की दुनिया को देखने के नज़रिये में भी विशाल परिवर्तन लाएगा। अब आप सुबह उठेंगे , और चिड़ियों की चहचहाहट वास्तव में आपको सुनाई देगी । सूरज की किरणें, जो पहले सिर्फ़ आपकी आखों को खोलने का कारण हुआ करती थीं, अब आपको विटामिन डी के साथ-साथ उम्मीद की एक नई किरण भी देंगी। चाय का कप आपके हाथ में होगा , और आपकी नज़रे फ़ोन की स्क्रीन पर नहीं बल्कि बगीचे में खेलती गिलहरियों पर होगी। 

 

निष्कर्ष

 

 ये परिवर्तन हमें सिखाएगा कि हमें तकनीक की गिरफ़्त से बाहर आकर जीवन को सच में जीने की ज़रुरत है, जहाँ छोटी-छोटी चीज़ें भी एक नई सुबह का आनंद दे सकती हैं। 

 

तो, आइए हम सभी अपने सोशल मीडिया अकाउंट्स से एक छोटा ब्रेक लें और वास्तविक दुनिया के अद्भुत अनुभवों को महसूस करें। और हाँ, अगली बार जब आप लाइन में खड़े हों, तो कोशिश करें कि फ़ोन निकालने की बजाए आस-पास के लोगों से बात करें, या वातावरण का आनंद उठाएं। कौन जाने, शायद आपको भी किसी छोटी सी गिलहरी में कुछ ख़ास नज़र आ जाए। 

 

लेख : *#अज़हान_साक़िबी✍🏻*

बरेली (उत्तर प्रदेश)