कुछ दिन से मैं इस जद्दोजहद में लगा हुआ था के "गाली" किस को कहते हैं? बहुत तहक़ीक़ कि बहुत लोगों से इस मुताल्लिक गुफ़्तगू कि तो कुछ बहुत दिलचस्प बातें सामने आईं।
सब से पहले मैं ज़िक्र करता हूँ के,गाली है क्या?
गाली को परिभाषित करना बहुत मुश्किल काम है, मैं विशेषज्ञों से चर्चा और गहरे अध्ययन के बाद इस नतीजे पर पहुंचा के "गाली" का ताल्लुक "संस्कृति" और "समाज" से है।
गाली क्या है इस पर चर्चा से पहले हमें ये जानना होगा के गाली किन-किन हालात में दी जाती हैं।
मैं जितना लोगों से मिला हूँ या मैंने इस बारे में जितना जाना के गालियां क्यों दी जाती हैं,सो मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि गालियां 6 सूरतों में दी जाती हैं।
1- गुस्से में
2- मज़ाक़ में
3- हैरत में
4- तकलीफ़ में
5- अफ़सोस में
6- आदतन
1- गुस्से में :- सबसे ज़ियादा गालियां गुस्से में ही दी जाती हैं, गालियां वुजूद में कैसे आई इसका तो इतिहास में कोई सुबूत नहीं मिलता लेकिन मुझे ऐसा ज़रूर लगता है के जब इंसान ने भाषा सीखी होगी तो गुस्से की तर्जुमानी के लिए जो शब्द वुजूद में आए होंगे वो "गालियां'' ही होंगी। इसके बाद बाकी की जो पांच सूरते हैं उन में भी "गालियां" इस्तेमाल होनें लगी होंगी।
2-मज़ाक़ में :- संसार की हर संस्कृति हर समाज में मज़ाक में गालियां देने का रिवाज रहा है , यह गालियां भी बाक़ी चीज़ो कि तरह वक़्त के साथ-साथ आधुनिक होती रहीं हैं। इन गालियों का तो यहां ज़िक्र करना मुनासिब नहीं है, लेकिन हमारी संस्कृति का गालियों से ऐसा ताल्लुक रहा है के आप सब उन गालियों तक पहुँच गए होंगे।
3- हैरत में :- मज़ाक की तरह हैरत में भी गालियां देने का रिवाज हमेशा से हमारे समाज में रहा है, गांव देहातों से लेकर मेट्रो सिटीज़ तक आपको ऐसे लोग बहुत बड़ी संख्या में मिल जाएंगे जो हैरत में गालियां देते हैं या कोई ऐसी बात जो शॉकिंग हो उसको गालियों के साथ बताना शुरू करते हैं ।
4- तकलीफ़ में :- विशेषज्ञों का कहना है तकलीफ़ के दौरान गालियां देने से तकलीफ़ कम हो जाती है, बीबीसी के एक आर्टिकल में ये चर्चा की गई है , डॉक्टर अपने एक एक्सपेरिमेंट कि चर्चा करते हुए लिखते हैं कि " एक आदमी को बर्फ़ कि एक बाल्टी में हाथ डालकर बर्दाश्त करने को कहा गया और उससे कहा गया कि आप ऐसे शब्द जुबान से बोले जो गालियों के समानार्थी हों।
ऐसा ही दोबारा किया गया और उस आदमी से कहा गया आप फिर इस बर्फ़ कि बाल्टी में हाथ डाले और अब गालियां दे डॉक्टर कहते हैं कि जब उसने गालियां दी तो उसकी तकलीफ़ बर्दाश्त करने की क्षमता पहले से ज़ियादा बढ़ गई। डॉक्टर ने ऐसे ही दो चार और एक्सपेरिमेंट की भी चर्चा आर्टिकल में की है।
5- अफ़सोस में :- अफ़सोस में गालियां देना बहुत आम बात है , दरअस्ल अफ़सोस गुस्से की उस हालत को कहते हैं जिसमें इंसान अपने आप को असहाय महसूस करता है। ऐसी हालत में गालियां देना मानव व्यवहार का हिस्सा है।
6- आदतन :- गालियों का हमारी संस्कृति से ऐसा ताल्लुक है कि हम बचपन से इतनी गालियां सुनते हैं और इतनी गालियां बकते हैं कि वह हमारी आम बोलचाल का हिस्सा बन जाती है ख़ासतौर पर गांव देहातों में आदतन गालियां बकने का रिवाज रहा है और आजकल आधुनिक समाज में छात्र-छात्राओं की ज़ुबान पर भी आदतन गालियां रहती हैं।
हमने गालियां देने वाली जिन 6 सूरतों का ज़िक्र किया है जरूरी नहीं है कि ये तमाम सूरते किसी एक इंसान में पाई जाएं बाज़ लोग गुस्से से ज़ियादा गालियां मज़ाक़ में देतें है तो बाज़ अफ़सोस में! और ये भी मुमकिन है के किसी इंसान के अंदर ये सारी सूरते पाई जाती हों।
इन तमाम सूरतों में सब से ज़ियादा गालियां जिस सूरत में दीं जाती हैं वो है "गुस्सा" मानव इतिहास में सब से ज़ियादा गालियां गुस्से कि तरजुमानी के लिए ही दी गई हैं।
अब ज़िक्र करते हैं कि गाली है क्या?
गाली को परिभाषित करना बहुत मुश्किल काम है अगर मैं बहुत आसान शब्दों में बात करूँ तो ये कह सकता हूँ के हर संस्कृति में गाली की परिभाषा अलग है।
गाली देने का मक़सद गुस्सा को ज़ाहिर करना है, सो हर संस्कृति में हर समाज में कुछ ऐसे शब्द हैं जो बुरे समझें जाते हैं मिसाल के तौर पर किसी संस्कृति में किसी जानवर को बहुत बुरा समझा जाता किसी समाज में किसी शरीर के अंग को और इसी तरह किसी पेशे को किसी लिंग ( gender) को। सो बतौर गाली किसी इंसान को वो जानवर कह देना या उस उस शारीर के अंग कि बात करना या उस को उस दूसरे लिंग का कह देना उस को गाली लगता है।
बिलकुल इसी तरह "औरत" का गाली में इस्तेमाल दुनिया की लगभग संस्कृतियों में किया जाता है , मानव व्यवहार यह है कि वह अपने घर कि औरत को लेकर मालिकाना रवय्या रखता है।इसलिए जब उस के घर कि औरत का ज़िक्र किया जाए या उस औरत के किसी शारीरिक अंग का तो वो उस इंसान की भावनाओं को आहत करता है, और एक असरदार गाली के रूप में उस कि भावनाओं पर असर करता है।
उर्दू शायरी का एक बहुत बड़ा नाम मिर्ज़ा ग़ालिब जो अपनी शायरी और ख़ुतूत के हवाले से पूरी दुनिया में जाने जाते हैं उन से मंसूब एक किस्सा इस हवाले से बड़ा दिलचस्प है।
ग़ालिब के एक दोस्त ग़ालिब से गालियों पर बातचीत कर रहे थे तो ग़ालिब उन को गाली देने के आदाब सिखाने लगे और कहने लगे " बूढ़े और अधेड़ उम्र आदमी को बेटी कि गाली देनी चाहिए ताकि उसे ग़ैरत आए,जवान को जोरू (बीवी) कि गाली देनी चाहिए के उसे जोरू से ज़ियादा ताल्लुक होता है,और बच्चें को माँ कि गाली देनी चाहिए के उस का सब से गहरा ताल्लुक माँ से होता है"
गालियां हर मुल्क में अलग तरह से दी जाती हैं।
बीबीसी के एक आर्टिकल में है कि "किलारा(स्पेन कि नागरिक) कहती हैं कि स्पेनिश ज़ुबान में ईजाद कि बहुत गुंजाईश है जब कोई यहाँ इंतिहाई गुस्से में होता है तो वो गाली में पूरे जुमले अदा कर रहा होता है जिस में "कर्ता" क्रिया" और वस्तु" तीनों पाए जाते हैं और यह गालियां कहानी के रूप में दी जाती है ।
"मीकाईल(रूस के नागरिक) कहते हैं रूसी ज़ुबान गालियां बकने के लिए बेहतरीन है, इसमें इतने ज़ियादा अपमानजनक शब्द है के कोई भी बात गाली में कि जा सकती है, हमारे यहाँ गाली देने का रीवाज हमारे अदब का हिस्सा है, आप सोच भी नहीं सकते के कोई रूसी हो और वो गाली न दे।"
"जैकवलीन का कहना है के "चीनी ज़ुबान में बाज़ गालियां बहुत दिलचस्प हैं क्यों कि गाली देने वाला 18 पीड़ियों तक आप के घर वालों के साथ कुछ नाजायज़ करने का इरादा ज़ाहिर करता है, यानी वह कहेगा कि मैं आपकी मां आपकी दादी आपकी नानी और आपकी पिछली अट्ठारह नस्लों के साथ ऐसा कर दूंगा! मैं अपने वालिद से पूछती हूं इसमें मैं कहां गई?"
एक चीनी गाली में किसी को कछुए के अंडे के समान कहाँ जाता है, यह गाली हरामज़ादे की समानार्थी है , क्योंकि मादा कछुए का कोई एक साथी नहीं होता ।
कहने का मकसद यह है कि हर संस्कृति में हर समाज में गालियां अलग - अलग तरकीबो से दी जाती हैं, लेकिन दी ज़रूर जाती हैं।
एक सवाल ये उठता है कि जिस तरह से मर्दो नें गालियों में औरत का इस्तेमाल किया है उस तरह औरतों नें मर्द का क्यों नहीं?
इस सवाल के मेरे पास चार,पांच जवाब हैं!
पहला तो ये के मर्दो नें जो गालियां ईजाद कि हैं उन्ही गालियों से औरत के गुस्से कि भी तरजुमानी हो जाती है इसलिए औरत को नई गालियां ईजाद करने कि ज़रूरत नहीं पड़ी।
दूसरा जवाब इस इस सवाल का ये है कि जैसी हमने ऊपर चर्चा की थी के गालियां हर संस्कृति समाज में बुरा समझी जाने वाली बाते हैं जिससे सामने वाले की भावनाएं आहत हों,इसी तरह औरतों में "कोसना" गाली का काम करता है। खास तौर पर गांव देहातों में औरतों के बीच जो लड़ाई होती है उसमें गाली की जगह कोसना चलता है या'नी जिस शख़्स से लड़ाई हो रही है उसके किसी घर वाले को बद-दुआ देना।
तीसरा जवाब इस सवाल का यह है मर्दों ने जो गालियां ईजाद की हैं उन में से अक्सर गालियां औरतें अपने हिसाब से छोटे मोटे बदलाव कर के इस्तेमाल में ले लेती हैं।
अभी दो-चार दिन पहले एक लड़ाई देखने का इत्तेफ़ाक़ हुआ उस में मैंने एक नई गाली सुनी जो आज तक इस से पहले नहीं सुनी थी एक औरत नें दूसरी औरत से कहा तू "हिजड़ी" है इसके जवाब में उस नें कहा "तू हिजड़न तेरी माँ हिजड़न"
किसी मर्द को हिजड़ा कहना गाली है, उसकी वजह यह है हमारा समाज हमारी संस्कृति आधुनिक होने के बाद भी थर्ड जेंडर को अपने समाज का हिस्सा कुबूल नहीं कर पाई है , ( इसके पीछे बहुत सारे कारण हैं , जिन पर अलग से एक लेख लिखने की ज़रुरत है ) इसलिए किसी मर्द को हिजड़ा या ज़न्ख़ा कहना हमारे समाज में गाली के रूप में देखा जाता है ।
लेकिन मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि कोई औरत भी इस शब्द को गाली के रूप में इस्तेमाल कर सकती है,और इस्तेमाल भी इस तरह से किया जो शब्द अपने आप में एक लिंग है उसको जब गाली के रूप में इस्तेमाल किया तो उसका भी महिला संस्करण ईजाद कर लिया ।
इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि महिलाएं भी अपने गुस्से की तर्जुमानी बहुत आसानी के साथ अपने शब्दों में कर लेती हैं।
दूसरी बात यह जब हम मानव इतिहास को देखते हैं तो हमें मालूम होता है कि हमारे समाज में हमेशा से मर्दों ने औरतों को दबा कर रक्खा है, इस वजह से भी औरतों कि तरफ़ से वह गालियां वुजूद में नहीं आ सकी जिस में मर्द हों।
इस आधुनिक दौर में जिस तरह महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों की बराबरी कर रही है, मैं यह बात यकीन के साथ कह सकता हूं के आने वाले दौर में वो गालियां भी बड़ी तादाद में वुजूद में आयंगी जिस में मर्दो का इस्तेमाल होगा।
लेख : #अज़हान_साक़िबी ✍🏻
बरेली (उत्तर प्रदेश )