ग़ालिब का एक शेर और ज़िन्दगी का फ़लसफ़ा

 

 

बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना 
 आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्साँ होना 

 

 

आइये ग़ालिब के इस शे'र को देखते हैं, कहते हैं,  " बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना" या'नी कोई भी काम आप चाहें के आसानी से हो जाये तो ऐसा तो निहायत मुश्किल है, क्यूँकि हर काम मुश्किलात का सामना करने के बा'द ही आसान होता है। या'नी अगर आप चाहते हैं कि आपकी ज़िन्दगी में आसानी हो तो आपको मुश्किलों से गुज़रना पड़ेगा, कड़ी मेहनत के बाद ही आसानी मिलती है।

 

ग़ालिब के इस एक मिसरे को समझाने के लिए इस वक़्त के एक अच्छे शायर, अज़हर फ़राग़ का एक शे'र याद आ रहा है।

 

ये नहीं देखते कितनी है रियाज़त किस की 
लोग आसान समझ लेते हैं आसानी को
 

 

शायद इस शे'र को पढ़ने के बा'द आपको ग़ालिब के इस मिसरे का म'अनी समझ आये।


अज़हर फ़राग़ ने सीधी सीधी बात कही है कि लोग सामने वाले कि रियाज़त(मेहनत) नहीं देखते हैं कि उसने किसी काम को करने के लिए कितनी मुश्किलों का सामना किया है कितनी मेहनत की है, बस ये समझ लेते हैं कि उसने कितनी आसानी से किसी चीज़ को हासिल कर लिया या कोई चीज़ हासिल कर ली।

और दूसरे मिसरे में ग़ालिब कहते हैं, "आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्साँ होना"  या'नी आज आदमी को इन्साँ होना भी मयस्सर नहीं है,

 

मतलब हम सब आदम हैं ये आप सभी जानते हैं, लेकिन क्या आदम में इन्सानियत है, क्या वो एक अच्छा इन्सान है।


ग़ालिब उसी बात को कह रहे हैं कि आजकल इन्सानियत नाम की चीज़ किसी में भी नहीं बची है।वो इस शे'र में यही बताना चाह रहे हैं कि इन्सान होना इतना आसान नहीं है। अगर आदमी में इन्सानियत आ जाये तो उसको मा'लूम पड़ जायेगा कि उसका अस्ल मक़ाम क्या है, लेकिन ये इतना आसान कहाँ है।


अगर आदमी को अपना मर्तबा पता चल जाये तो वारा न्यारा हो जाये, आदमी भूल गया है कि ख़ुदा ने उसे अशरफ़ुल मख़लूक़ात बनाया है उसको ज़बान दी कि वो बोल सके, उसे आँख दी कि वो देख सके, उसे कान दिए कि वो सुन सके, लेकिन अफ़सोस की आज आदमी उसी ज़बान से लोगों को ग़लत बोलता है,उन्हीं आँखों से ग़लत कामों को देखता है, उन्हीं कानों से ग़लत बातें सुनता है। ख़ुदा ने आदमी को नेक कामों के लिए बनाया, और आज नादान उसी से महरूम है, दुनिया में आकर आदम ऐसे कामों में पड़ गया जो शैतानों वाले हैं।

 

इसी के हवाले से अकबर इलाहाबादी का एक शे'र है,

 

रहमान के फ़रिश्ते गो हैं बहुत मुक़द्दस 
शैतान ही की जानिब लेकिन मेजोरिटी है

 

 

 इस शे'र को यहाँ नज़्म करने का मक़सद आप बेहतर समझ गए होंगे।आख़िर आज आदमी शैतान वाले कामों में ज़्यादा उलझा हुआ है, ये शे'र आदम पे इक तंज़ है।इसी चीज़ को मौलाना हाली(अल्ताफ़ हुसैन 'हाली') यूँ बयान करते हैं,

 

फ़रिश्ते से बढ़ कर है इंसान बनना 
मगर इस में लगती है मेहनत ज़ियादा 

 

मौलाना हाली फ़रमाते हैं कि फ़रिश्ते से बढ़कर है इन्सान बनना, या'नी आप मौलाना हाली की इसी बात से अन्दाज़ा लगायें की इन्सान का मक़ाम क्या है। मगर मिसरा-ए-ऊला में फ़रमाते हैं कि इसमे बहुत मेहनत लगती है इतना आसान नहीं है इन्सान होना,इसी चीज़ को हज़रत ख़्वाजा मीर दर्द बयान करते हैं

 

तर-दामनी पे शैख़ हमारी न जाइयो 
दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें
 

 

ये है इन्सान का मक़ाम कि अगर दामन निचोड़ दें तो फ़रिश्ते वज़ू करें।इस शे'र से बख़ूबी आप समझ गए होंगे की ग़ालिब का ये शे'र कितना बड़ा है।ग़ालिब के इसी शे'र को देखें तो आपको अल्लामा इक़बाल का जो ख़ुदी(self) का कॉन्सेप्ट है वो यही तो है।

 

मुख़्तसर सी बात में आपको अल्लामा साहब का फ़लसफ़ा-ए-ख़ुदी भी समझा दूँ तो आप पर ग़ालिब का ये शे'र पूरा पूरा खुल जायेगा।

ख़ुदी = अल्लामा साहब फ़रमाते हैं कि ख़ुदा ने आदम को अशरफ़ुल मख़लूक़ बनाया(   Ashraful makhluqat refers to human beings, as human beings are the most evolved of all creation, or the most 'ashraf' of all the makhluq (living beings) on this planet), ख़ुदा ने इन्सान को नेक मक़ासिद के लिए पैदा किया है। लेकिन अफ़सोस कि आज इन्सान ये सब भूला बैठा है।वो भूल गया है उसे क्यूँ पैदा किया गया है, आदम दीगर मख़लूक़ से बिल्कुल अलग है।उसको इसलिए नहीं बनाया कि खाया, पिया और सो गया और सिर्फ़ अपनी नस्ल बढ़ाई, अगर ऐसा होता तो इन्सान और जानवर में फ़र्क़ ही क्या रह गया।अल्लामा साहब के ख़ुदी के कॉन्सेप्ट को समझाने के लिए काफ़ी वक़्त चाहिए लेकिन उम्मीद है कि आप थोड़ा तो समझ ही गए होंगे।


अब ग़ालिब का ऊपर वाला शे'र पढ़ें और मज़े लें।और आख़िर में मैं एक अहम बात कहना चाहता हूँ की, "किसी भी आदम ज़ात का इन्सान से इन्सानियत का सफ़र ऐसा है जैसे किसी काँटों भरे पुल को नंगे पैर पार करना, जबकि पुल के पार जन्नत की हवाएँ हैं"या'नी मुश्किल और दुश्वारियों के बा'द ही आसानी है

 

 

लेखक : आक़िब जावेद
खटीमा (उत्तराखंड)