मुहब्बत और हवस
(मिसाल की सूरत में )

फ़र्ज़ कीजिये आप कहीं गए और आपको एक ख़ूबसूरत गमले में बेहद ख़ूबसूरत पौधा दिखा जिस के रंगीन दिलकश फूल पर आप अपना दिल दे बैठे। अब इस सूरत में मुहब्बत और हवस इंसान से क्या कराएगी ?

 

मुहब्बत:


 इंसान इस फूल को और जानना चाहेगा। इसकी जड़ों से लेके इसकी ख़ुशबू सब जानने की कोशिश करेगा यहाँ तक कि उस में खो जाएगा ख़ुद को इस पर ख़र्च करेगा फूल की क़द्र करेगा और अपनी जान से ज़्यादा फूल की देख भाल करेगा। ताकि फूल को नुकसान न पहुँचे इसकी ख़ूबसूरती क़ायम रहे उसको कभी भी उसकी शाख़ से जुदा नहीं करेगा यानी उसकी ख़ुशी के लिए अपनी ख़ुशी क़ुर्बान कर देगा। उसको उस ही की शाख़ पर लगा छोड़ देगा और अगर वो उसको अपनाएगा तो उसकी जड़, मट्टी, गमले  के साथ अपनाएगा ताकि फूल की ख़ूबसूरती बरकरार रहे और फूल सलामत रहे और अपनी ख़ुशबू इस पर लुटाता रहे.

 

हवस:
इस सूरत में इंसान को नहीं फ़र्क़ पड़ेगा कि फूल को कितनी तकलीफ़ होगी, उसकी ख़ूबसूरती पर क्या असर पड़ेगा। पानी फूल को ज़िन्दगी देता तो वो फूल को तोड़ कर सिर्फ पानी में रखने की सोचेगा इस चीज़ से बेख़बर कि भरपूर पानी में भी इस फूल की ज़िन्दगी बिना जड़ मट्टी गमले के कितने ही दिन की होगी। इंसान बस फूल की ख़ुशबू और रंग को पाने की चाह में लगा रहेगा चाहे कैसे भी हो। इस के अंजाम में मुमकिन है कि इंसान कोई ग़लत फ़ैसला भी कर बैठे। हवस में इंसान को बस शय को पाने की चाह होती है नहीं फ़र्क़ पड़ता कि शय ज़िंदा भी रहेगी या नहीं। 

 

ख़ुलासा:


मुहब्बत हमेशा पा लेने का ही नाम नहीं होता,कभी कभी एक दूसरे की भलाई के लिए जुदा हो कर भी  मुहब्बत क़ायम रहती है और निभाई जा सकती है। 


(निभाने की मुख़तलिफ़ सूरतें हैं इसपर फिर कभी बात करूंगा)

जब कि हवस वक़्ती तौर पर पा लेने की ज़िद से ज़्यादा कुछ भी नहीं। 

 

लेखक : सलमान आरिफ़
बरेली (उत्तर प्रदेश)