हक़ीक़ी ग़म

ख़ुशी और ग़म अपनी अपनी ख़्वाहिशात और एहसासात के 2 अलग अलग चेहरे हैं। ग़म का पहला दर्जा अफ़सोस है। जो कुछ वक़्त साथ रहता है फ़िर चला जाता है। अफ़सोस का ज़ियादा वक़्त तक साथ रहना ग़म बन जाता है। ज़रूरी नहीं एक इंसान का ग़म दूसरे का भी ग़म हो या फ़िर एक इंसान की ख़ुशी दूसरे की ख़ुशी हो इसके बरअक़्स ये बारहा देखा गया है की किसी इंसान का ग़म दूसरे इंसान  की ख़ुशी और दूसरे इंसान की ख़ुशी किसी इंसान का ग़म बन जाता है।

 

ख़ुशी के साथ ग़म हमेशा रहता है। लेकिन ख़ुशीयों की रौशनी इतनी तेज़ होती है की ग़म का अंधेरा नज़र ही नहीं अता ख़ुशी और ग़म हमेशा साथ रहते हैं। मिसाल के तौ़र पर एक तरफ़ बेटी की पैदाइश की ख़ुशी और दूसरी तरफ उसको रुख़सत करने का ग़म साथ रहता है। माँ बाप का बुढ़ापे में सहारा बनने की ख़ुशी के साथ उनको खोने का ग़म साथ रहता है, इस ही त़रह़ बीमार होने का ग़म और ठीक होने की ख़ुशी साथ रहती है।


बस यूँ समझलें ख़ुशी अपने साथ ग़म को लेके आती है, जितनी बड़ी ख़ुशी उतना बड़ा ग़म।

ग़म इंसान वो चीज़े सिखाता है जो शायद ख़ुशी नहीं सिखा सकती।  ग़म को बुरा समझा जाता है दर'असल  ग़म एक क़िस्म की ने'मत है जिस को हम अपनी ज़िन्दगी का बदतरीन दौर समझते हैं  वो हक़ीक़त में एक नए सफ़र का अगाज़ है। बाज़ औक़ात अल्लाह तआला ग़म देके भी इंसान को अपने क़रीब कर लेता है। गमज़दा इंसान सुकून तलाश करते करते क़सरत से इबादत बिल ख़ुसूस दुआऐं करने लगता है और अल्लाह तआला का क़ुर्ब रफ़्ता रफ़्ता हासिल करता है और फ़िर एक वक़्त आता है जब रहमतों की बारिश दिल पर बरसने लगती है जिस में इंसान सुकून पाने लगता है। यानी की अब इसको इबादत में वो लज़्ज़त महसूस होने लगती है जो आम तौर पर कभी न हुई थी गोया इसका ग़म इसको कामयाब कर देता है इसलिए ग़म को ने'मत भी केहत हैं।

 

जिसको हम बुरा वक़्त समझ रहे हैं वो अल्लाह तआला से अपना राबता मुज़बूत करने का बेहतरीन वक़्त है। ग़म इंसान के ईमान को मज़बूत करता है।


क्यों  की दुनिया से हार के अपने रब के हुज़ूर सजदा रेज़ होने पर जो सुकून और ठंडक हासिल होती है वो ग़म से टकरा कर सजदा करने वाला इंसान ही जानता है।

 

यूँही जब दिल की दुनिया आबाद हो रही होती है तो उसको ग़म से भी गुज़ारा जाता है।


जब दिल टूट जाता है तो उसमें भरी रौशनी ही हमारे अंदर के अंधेरों को ख़त्म करती है यूँ लगता है की दिल का टूटना ही किसी झूठे भरम का टूटना है।

 

यूँ समझ लें की अहम इम्तिहान उस का ही लिया जाता है जो अहम इम्तिहान देने के क़ाबिल होता है।


ये ख़ास वक़्त ख़ुद को समझने का होता है और ख़ुद में सुधार करने का होता है। 


जिस ज़ात ने दिल पैदा फ़रमा कर उसमें एहसासात डाले बस वही ज़ात इस दिल के बेचैन और ग़मगीन होने पर  दिल को राहत देना जानती है।
  
ग़म तो बस एक क़ैफीयत है।


 मिला क्या? क्या खो गया? जब की ग़ौर इसपर करना चाहियें इतना सब होने के बाद भी क्या हमारा रब हम से राज़ी है? क्य हम उसकी रज़ा पर राज़ी हैं? हमने शुक्र किया या शिकवा?

 

इंसान किसी चीज़ के चले जाने या हासिल न होने पर गमज़दा हो जाता है। बल्की सोचने की बात ये है की जब हर शय फ़ानी है। तो हमारे पास भी चीज़े कब तक रुकेंगी दूसरी बात ये जो चीज़ हमें मिली नहीं क्या हमने एक बार भी ग़ौर किया शायद हमारे पास उस्से बेहतर चीज़ पहले से ही मौजूद हो और हमने ध्यान न दिया हो।अपनी बात को यहाँ मुकम्मल करते हुए ये कहना चाहता हूँ।


हर रात के बाद सवेरा है हर तकलीफ़ के बाद राहत


हर मुश्किल के बाद आसानी है हमें बस समझने की ज़रूरत है की कैसे आगे बड़ा जा सकता है।


इसकी मिसाल पानी जैसी है रुका हुआ पानी ख़राब माना जाता है जब के बहता हुआ पानी वज़ू करने, पीने वगैरह और दीगर काम में आता है  यूँ ज़िन्दगी में आगे बढ़ना ज़रूरी है रुकने से क्या हासिल होना है?

हर ग़म से निजात पाने का बेहतरीन तरीक़ा अल्लाह तआला की रज़ा पर राज़ी होना है। क्यों की जब हर चीज़ फ़ानी है तो इन ख़्वाहिशो की क्या बिसात? अ़त़ा करना या वापिस लेना ये सब उसके दस्त ए क़ुदरत में है। जो ख़ुशी आपको सुला कर ग़ाफ़िल कर रही है उस्से लाख बेहतर ग़म है जो आपको बेदार कर रहा है 


दुआ है की अल्लाह तआला हमें हक़ीक़ी ख़ुशी अता करे और हक़ीक़ी ग़म से आशाना फ़रमाए!

 

सलमान आरिफ़
बरेली (उत्तर प्रदेश )